कई बार हम ऐसी बीमारी से पीड़ित होते हैं जिनके बारे में हमे पता तक नहीं होता और वे हमारे स्वास्थ्य को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाती रहती हैं। आज हम बात कर रहे हैं एंड्रोमेट्रियोसिस के बारे में। यह समस्या महिलाओं को होने वाली एक आम स्वास्थ्य समस्या है। एक शोध के मुताबिक भारत में 1 करोड़ से भी अधिक महिलाएं हर साल एंड्रोमेट्रिओसिस से पीड़ित होती हैं। देश में हर दस में से एक महिला इस समस्या से ग्रसित है।
क्या है एंड्रोमेट्रियोसिस?
एंड्रोमेट्रियोसिस का नाम एंडोमेट्रियम शब्द से बना है। एंडोमेट्रियम गर्भाशय के अस्तर के टिश्यू को कहते हैं। महिलाओं में एंड्रोमोट्रियोसिस की समस्या तब होती है जब इन टिश्यू के बाराबर टिश्यू महिला की बच्चेदानी के बाहर या शरीरी के अंदर अन्य अंगों में बढ़ने लगते हैं, जहां इन्हें नहीं बढ़ना चाहिए। इसे ही एंड्रोमेट्रियोसिस बीमारी बोलते हैं।
लक्षण
• थकान
• बांझपन
• मासिक धर्म के समय ज्यादा दर्द होना
• मासिक धर्म के बिना योनी में दर्द होना
• शरीरिक संबंध बनाते समय दर्द होना
इनके अलावा कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जो मासिक धर्म से पहले या बाद और दौरान भी होते हैं और अगले महीने फिर से हो जाते हैं-
• टॉयलट में खून आना
• गुदा से खून आना
• शौच के दौरान दर्द या मुश्किल होना
• सूजन, दस्त या कब्ज होना
• कंधो का दर्द
कारण
एंडोमेट्रिओसिस होने की कोई एक वजह नहीं है। कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से यह समस्या महिलाओं में हो सकती है जैसे- रेट्रोग्रेड पीरियड्स, पारिवारिक इतिहास, मासिक धर्म से संबंधित समस्याएं। जिनमें कम या ज्यादा समय के लिए मासिक धर्म आना। कम उम्र में मासिक धर्म शुरू होना। जिन महिलाओं ने कभी बच्चे को जन्म नहीं दिया उनमें इसके होने का खतरा ज्यादा होता है। कई बार ऐसा देखा गया है यह बीमारी उन महिलाओं को भी हुई है जो पहले गर्भवती हो चुकी हैं। इसके अलावा भी एंडोमेट्रिओसिस होने के कई कारण हो सकते हैं।
नुकसान
यह समस्या शरीर में मौजूद फैलोपियन ट्यूब या अंडाशय को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे महिलाओं में प्रजनन समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा एढ़ीजन और ओवेरियन अल्सर भी हो सकता है।
उपचार
एसजीएल चैरीटेरिटेबल अस्पताल, जालंधर की ऑबसटैट्रिशियन एंड गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. नीलू खन्ना बताती हैं कि एंडोमेट्रियोसिस को रोका नहीं जा सकता, लेकिन एस्ट्रोजेन हार्मोन के स्तर को कम कर इसके शरीर में विकसित होने की संभावना को कम किया जा सकता है। इसके लिए नियमित व्यायाम करें, वजन ज्यादा है तो उसे कम करें, धूम्रपान का सेवन बंद करें, कैफीन युक्त पेय पदार्थ न लें और केवल हार्मोन-मुक्त मीट खाएं। कोशिश करें आर्गेनिक खाद्य पदार्थ खाने की। ऊपर बताए गए लक्षण दिखने पर डॉक्टर से संपर्क जरूर करें।